Monday, 30 March 2020

कोविद-19 से बचाव के सरल उपाय




कोविद-19 से बचाव


पिछले लेख में हमने कोविद-19 नामक बीमारी के बारे में कुछ मूल तथ्यों की जानकारी ली थी और चर्चा करी थी. अब उसी कड़ी में आज चर्चा इस बात पर करते हैं कि इस महामारी से बचाव के क्या उपाय किये जाने चाहिए.

परन्तु इस चर्चा के पहले मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ या कोई चिकित्सक या शोधकर्ता नहीं हूँ. मेरी जानकारी के कई स्त्रोत् हैं जिनमें से कुछ पूर्णतया सही नहीं भी हो सकते हैं. इसलिए इस लेख में दी गयी जानकारी का उपयोग करने के पूर्व किसी विशेषज्ञ अथवा किसी अधिकृत संस्था से सलाह अवश्य ले लें.

इस विषाणु से बचाव के कई स्तर हैं जिनमें से प्रमुख तो तीन ही लगते हैं- पहला सरकार द्वारा अस्पतालों और अन्य प्रबंध जैसे कि लॉक डाउन (जिसकी चर्चा हमने पिछले लेख में की थी), दूसरा चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों द्वारा प्रयास और, तीसरा हमारे अपने द्वारा किये प्रयास. इनमें से भी हमारे स्वयं के द्वारा किये जाने वाले प्रयास अधिक सार्थक होने की सम्भावना है क्योंकि इस विषाणु को रोकना केवल सरकार या किसी संस्था के अकेले सामर्थ्य के बाहर की बात प्रतीत होती है.

हम क्या प्रयास कर सकते हैं उसके लिए पहले इस दुश्मन वायरस के बारे में यह जानना आवश्यक है कि यह फैलता कैसे है? ये नूतन कोरोना विषाणु हमारे शरीर पर तबतक हमला नहीं करता जबतक यह हमारे शरीर के अन्दर किसी द्रव्य के साथ न पहुँच जाये जैसे कि आँखों से या मुंह से या फिर नासिका से. किसी जली या कटी त्वचा में से होकर भी यह विषाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता हो ऐसा निष्कर्ष मैंने अभी तक तो कहीं नहीं देखा लेकिन चूंकि अभी इस विषाणु पर शोध चल ही रहा है तो नए तथ्यों के सामने आने पर कोई आश्चर्य भी नहीं होगा. जो भी हो, सावधानी इतनी लेनी है कि किसी प्रकार यह विषाणु हमारे शरीर के अन्दर प्रवेश न करे.

शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि यह वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति की छींक अथवा श्वास में उपस्थित तरल की सूक्ष्म बूंदों में स्थित होकर हवा में बह सकता है. उस संक्रमित हवा में यदि हम श्वास लेते हैं तो यह विषाणु फिर हमारी नासिका से श्वास नालिका और फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है जहाँ यह घोर न्यूमोनिया के लक्षण उत्पन्न करता है. इस कारण से संक्रमित व्यक्ति के लक्षणों में एक उसका सांस लेने में कठिनाई होना भी है.

अब श्वास को रोक कर रखना तो संभव नहीं है और न ही आती हुई छींक को रोक पाना. इसलिए संक्रमित व्यक्ति पर ही यह जिम्मेदारी आ पड़ती है कि वह दूसरों तक इस विषाणु को फैलने से रोके, अपनी छींक को ऐसी दिशा में और ऐसे प्रकार से निकाल कर कि उससे विषाणु हवा में कम से कम पहुंचें. इसके लिए जानकारों ने विधि सुझाई है कि छींकें तो अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढक कर. इससे छींक के अधिकांश कण हमारी कुहनी पर ही रुक जायेंगे. प्रश्न यह कि कुहनी क्यों जबकि अपनी हथेली का उपयोग कहीं अधिक सरल और प्राकृतिक है. और उत्तर यह कि विशेषज्ञ आपको अपनी हथेलियों या उँगलियों में इस विषाणु को नहीं होने देना चाहते हैं. उसके कारण पर अभी आगे चर्चा करते हैं लेकिन अभी तो यह कि यदि कुहनियों का उपयोग नहीं कर सकते तो कम से कम किसी रुमाल या टिश्यू पेपर का उपयोग अवश्य करें और उपयोग के बाद उसको किसी बंद ढक्कन के कूड़ेदान में फेंक दें. बंद ढक्कन क्यों? और फेंक क्यों दें? ऐसा इसलिए कि विषाणु को हवा में आने से रोकना है न, तो खुले में तो नहीं फेंक सकते और जितनी जल्दी अपने पास से हटा दें उतना संक्रमण कम होगा. कुल मिला कर कुहनी में छींकनेवाला सुझाव मुझे सबसे कारगर लगता है.

एक दूसरा उपाय भी है, चेहरे पर मास्क पहनने का. लेकिन ये थोडा पेचीदा है, आईये बताता हूँ. चेहरे पर मास्क लगाने की सलाह उनके लिए है जिनको खांसी या जुखाम हो चुका है और उनकी छींक या खांसी के कणों से दूसरों को बचाना है. चेहरे पर मास्क आपकी छींक के कणों को वहीँ रोक लेता है, उनको हवा में फैलने से बचाता है. इसी कारण से किसी स्वस्थ व्यक्ति, जिसकी छींक में नूतन कोरोना वायरस के कण नहीं उसको मास्क पहनने की आवश्यकता नहीं. हालाँकि स्वस्थ व्यक्ति भी मास्क पहन कर दूसरों को अपनी छींक अथवा खांसी से बचा सकता है. लेकिन मास्क के साथ कुछ सावधानी भी जुड़ी है नहीं तो लेने के देने पड़ सकते हैं. मास्क  पहनने पर हमारी अपनी श्वास में वाष्प के कण मास्क को भिगो देते हैं और श्वास की गर्मी के साथ मिलकर भीगे हुए मास्क की यह स्थिति विभिन्न रोगाणुओं को पनपने के लिए अत्यंत अनुकूल स्वर्ग जैसी है. अब कोरोना आये या जाये, बाकी रोगाणुओं की तो चांदी हो गयी समझिये. इसीलिये विशेषज्ञ एक बार के या फिर कुछ घंटों के उपयोग के बाद ऐसे मास्क को बदल देने की सलाह देते हैं.

अब रही बात कि दूसरों की तो ठीक मगर अपनी स्वयं की सुरक्षा के लिए तो मास्क पहन ही लें ना? तो मामला असल में यह है कि नूतन कोरोना विषाणु बहुत ही छोटे आकार का है, हमारे बाल की मोटाई से भी लगभग 500 गुणा छोटा और इसलिए साधारण मास्क से इसको रोक पाना संभव नहीं लगता. इसको रोकने के लिए विशेष मास्क ही कारगर पाए गए हैं जो कि अत्यंत छोटे कणों को रोक पाने में समर्थ हों. इस प्रकार के मास्क की एक विशिष्ट कोटि निर्धारित की गयी है और इनको एन-95 श्रेणी के मास्क से जाना जाता है. जो चिकित्सा सेवा में लगे लोग हैं उनके लिए तो और भी विशेष मास्क की आवश्यकता पड़ सकती है.

इन सबके बीच एक अत्यंत गंभीर समस्या यह भी है कि इस नूतन कोरोना वायरस से संक्रमित होने के लक्षण कई बार कुछ समय के बाद ही पता चलते हैं या फिर हो सकता है कोई लक्षण दिखाई ही न पड़ें. ऐसी अवस्था में कोई संक्रमित व्यक्ति स्वयं को स्वस्थ मानकर करके निश्चिंत होकर दूसरों में इस विषाणु को फैला सकता है. यहाँ तक कि दूसरे लोग भी उस संक्रमित व्यक्ति को स्वस्थ मानकर असावधानी रख सकते हैं जिससे उनके स्वयं संक्रमित होने का ख़तरा और भी अधिक हो जाता है.

निष्कर्ष यह कि संक्रमित व्यक्ति को मास्क अवश्य पहनना चाहिए जिससे वह दूसरों को संक्रमण से बचा सके. परन्तु मास्क पहनने के लिए सावधानियों को भी दृष्टि में रखना चाहिए. और जो स्वयं को असंक्रमित एवं स्वस्थ अनुभव करते हों उनको भी एक संक्रमित व्यक्ति के जैसे ही सावधानी रखनी चाहिए. अर्थात हम सभी को ऐसी सावधानी रखनी है मानो हम स्वयं संक्रमित हैं अथवा आस-पास भी सभी संक्रमित हैं. यह एक विचित्र परिस्थिति है और हम सबके लिए एक बिलकुल नया अनुभव. जिनको जानते समझते हुए संक्रमित लोगों के पास जाकर काम करना ही है, जैसे कि चिकित्सा सेवा से जुड़े लोग, उनको तो विशिष्ट एन-95 श्रेणी के मास्क का ही उपयोग करना चाहिए.

एक अन्य उपाय भी सुझाया गया है दूरी बना कर रखने का. शोधकर्ताओं ने पाया है ये यह विषाणु वजन में कुछ भारी होने के कारण हवा में अधिक देर तक नहीं तैरता और लगभग एक मीटर की दूरी तक जाकर (यदि कोई स्पष्टतः खांस या छींक नहीं रहा) नीचे भूमि पर गिर जाता है. ऐसी अवस्था में सभी लोग यदि कम से कम एक मीटर की दूरी आपस में सदा बना कर रखें तो किसी दूसरे संक्रमित व्यक्ति से इस संक्रमण को ग्रहण करने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है. इसी उपाय को सोशल डिस्टेंस अथवा सामाजिक दूरी का नाम दिया गया है. हालाँकि कुछ ऐसी सूचनाएं कतिपय स्त्रोत से आती हैं कि यह विषाणु हवा में लगभग आठ घंटे तक तैरता रह सकता है. यदि ऐसा है तो फिर सोशल डिस्टेंस या सामाजिक दूरी भी बहुत कारगर साबित नहीं होने वाला. परन्तु अभी के अनुभवों से तो ऐसा लगता है कि सामाजिक दूरी का उपाय कारगर ही है. कारण है कि विश्व के अनेकों देश और यहाँ तक कि चीन भी, जहाँ से यह विषाणु पनपा और पूरे विश्व में फैला, सामाजिक दूरी के उपाय अपना कर ही इससे लड़ पा रहे हैं.

अभी तक के उपरोक्त बचाव के उपाय इस बात पर निर्भर हैं कि हम श्वास लेते समय क्या सावधानी रख सकते हैं जिससे यह विषाणु हमारी श्वास नलिका में हमारी नासिका के रास्ते प्रवेश न कर सके. किन्तु यही एक रास्ता नहीं है विषाणु के हमारे शरीर में घर करने का. पाया गया है कि हमारी आँखों और मुख के द्वार से भी यह विषाणु हमला कर सकता है. और इन दोनों जगहों तक इसके पहुँचने का माध्यम है हमारे अपने हाथ. जी हाँ, शोधकर्ताओं ने पाया है कि हम प्रायः अनजाने ही अपने हाथों से अपने मुख और अपनी आँखों को छूते रहते हैं. ऐसी अवस्था में यदि यह विषाणु हमारे हाथों में किसी तरह पहुंचा हो तो उसके द्वारा यह हमारे मुख और आँखों तक भी निष्कंटक पहुँच सकता है.  

इस अवस्था से बचने का सबसे सरल उपाय तो है कि अपने हाथों से अपने मुख, अपना चेहरा या अपनी आँखों को न छुएं. परन्तु यह अनजाने में स्वतः होने वाली क्रिया है अतएव यह उपाय अधिक व्यावहारिक नहीं जान पड़ता. इससे अच्छा तो यह उपाय है कि हम अपने हाथों में इस विषाणु को आने ही न दें.

पाया गया है कि यह विषाणु संक्रमित व्यक्ति के शरीर से खांसी, छींक या अन्य किसी प्रकार से, जैसे कि संक्रमित व्यक्ति के हाथों से, निकल कर हवा में रहता है और फिर आस पास की धरती और दूसरी वस्तुएं जो उस व्यक्ति ने अपने हाथों से छुई हैं उनपर पर ठहर जाता है. जब हम उन वस्तुओं के संपर्क में आते हैं तो यह विषाणु तेजी के साथ हमारे शरीर से चिपक सकता है. चूंकि संपर्क में आने का एक बड़ा माध्यम हमारे अपने हाथ हैं इसलिए यह विषाणु हमारे हाथों में ठहर कर फिर हमारे शरीर में अन्दर प्रवेश पाने का इंतज़ार करता है. इसको हमारे हाथों में ना आने देने के लिए आवश्यक है कि संक्रमित वस्तुओं को न छुएं. 

परन्तु यहाँ एक कठिनाई ये है कि यह विषाणु आँखों को दिखाई नहीं देता, अदृश्य है. तो जाने अनजाने में किसी न किसी संक्रमित वस्तु को हम अपने हाथों द्वारा संपर्क में लेंगे ही. और तब बचाव का एक ही उपाय है कि अपने हाथों से किसी भी तरह इस विषाणु को हटाना. यही कारण है कि बार बार अपने हाथों को साबुन से धोने की सलाह दी जा रही है. हाथ भी केवल खाना पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अच्छी तरह से बीस सेकंड तक रगड़ रगड़ कर साबुन से धोये और उसके बाद पानी से साफ़ करें. साबुन न होने की अवस्था में सैनीटाईज़र का उपयोग किया जा सकता है लेकिन उसमें भी यदि अल्कोहल की मात्र ६५% से कम है तो कोई फायदा नहीं. इसके अतिरिक्त सैनीटाईज़र महँगा भी आता है और आसानी से उपलब्ध भी नहीं हो पा रहा है, इसलिए साबुन से हाथ धोना ही एक बेहतर उपाय दिखाई देता है.

ध्यान देने योग्य बात ये है कि सभी लोगों को संक्रमित मानकर ही व्यवहार करना है. अर्थात अपने बचाव के सभी उपायों में कभी भी, किसी के लिए भी ढील नहीं देनी है, चाहे सामने वाला स्वस्थ ही क्यों न जान पड़ता हो. इसी प्रकार से जो वस्तुएं बाहर से लायी जाती हैं, और इस कारण से जिनके दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आये होने की संभावना है, उनको साफ़ करके (जैसे साबुन पानी में लगभग १ मिनट भिगो कर और फिर पानी से साफ़ करके) इस्तेमाल करना ज्यादा ठीक होगा. जिन वस्तुओं को इस प्रकार धोना संभव नहीं, जैसे समाचार पत्र, उनको कुछ घंटों के बाद ही छुएं जिससे तबतक उनपर स्थित विषाणु के कण अपनी रोग क्षमता को अधिकांशतः कम कर चुके हों. और उनके उपयोग के बाद वापस अपने हाथ साबुन से धो लें. यह विषाणु कई प्रकार की सतह जैसे कागज़, लोहा, प्लास्टिक इत्यादि पर काफी समय तक रह सकता है और अभी तक इस विषय पर शोध चल ही रहा है.


इस कोविद-19 महामारी से बचने के लिए उपायों को संक्षिप्त में क्रम बद्ध कर लेते हैं

क्या करें :
1.       हाथों को साबुन से कम से कम बीस सेकंड तक दिन में कई बार धोएं. साबुन न होने की अवस्था में ६५% अल्कोहल मात्रा वाले सैनीटाईज़र का प्रयोग करें.
2.       लोगों से कम से कम एक मीटर की दूरी बना कर ही खड़े हों. इसी क्रम में हाथ मिलाने या गले मिलने के स्थान पर नमस्कार से काम चलायें.
3.       छींक या खांसी आने पर अपने हाथ की कोहनी से ढक कर छींकें या खासें.
4.       सर्दी जुखाम होने पर मास्क अवश्य लगायें. जब भी मास्क पहनें उससे सम्बंधित सावधानियों का पालन करें. यदि स्वस्थ हों तो भी मास्क लगा सकते हैं परन्तु यह सदैव दूसरों के बचाव के लिए ही है. यदि स्वयं को बचाना है तो एन-95 श्रेणी का ही मास्क उपयुक्त है.
5.       बाहरी वस्तुओं को जहाँ तक संभव हो धो कर प्रयोग करें. संभव न होने पर उनका प्रयोग कम से कम करें और सावधानी रखें.
6.       अस्वस्थ होने की अवस्था में घर पर ही रहें और दूसरे लोगों के कम से कम संपर्क में आयें. ऐसा कम से कम १४ दिनों तक लगातार करें.
7.       घर में किसी के अस्वस्थ होने (सर्दी, बुखार, सांस लेने में कष्ट इत्यादि) पर जहाँ तक हो सके दूरी बना कर रहे और इस्तेमाल में आने वाली सभी वस्तुओं को संक्रमित मान कर ही सावधानी रखें.

क्या ना करें
1.       भीड़-भाड़ वाली स्थिति उत्पन्न ना करें और ऐसी जगहों पर जाने से बचें. अनावश्यक रूप से घर के बाहर न निकलें.
2.       खुले में न थूकें, न गन्दगी फैलाएं.
3.       धूम्रपान, शराब इत्यादि पदार्थों जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, के सेवन से बचें.
4.       यदि मास्क लगते हों तो उसको अपने हाथों से मुख के सामने वाले भाग में ना छुएं. केवल उसके इलास्टिक डोरी वाले हिस्से से पहनें या उतारें.

ये बहुत ही साधारण से दिखने वाले उपाय हैं लेकिन इनका इस महामारी की रोकथाम में बहुत बड़ा योगदान है. जैसा कि मैंने पिछले लेख में आशंका जताई थी कि इस महामारी का प्रकोप तबतक चलने वाला है जबतक हम इसकी प्रतिरोधक क्षमता नहीं पा लेते, इसलिए इन उपायों का उपयोग एक लम्बे समय तक करने की आवश्यकता हो सकती है. ये समय कितना लम्बा होगा वह इस पर निर्भर करेगा कि यह महामारी कितना भयावह रूप लेती है, और यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितनी सावधानी रखते हुए उपरोक्त उपायों को अपनाते हैं.

इसलिए एक बार पुनः कहूँगा कि हम अपने को स्वस्थ रखें, स्वयं भी बचें और दूसरों को भी बचाएँ.


कोविद -19 के आगे





कोविद-19 के आगे


आज २९ मार्च रविवार है, जनता कर्फ्यू से ठीक एक हफ्ता निकल चुका है. भारत देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की गिनती एक हजार से अधिक हो चुकी है और क्रमशः मृत्यु का आंकड़ा भी धीरे धीरे ऊपर बढ़ रहा है. देश एवं दुनिया में इस चीनी वायरस से निबटने के तरीकों पर बहस भी छिड़ी है और साथ ही साथ अलग अलग उपाय लागू भी किये जा रहे हैं. चूंकि अभी इस वायरस का खतरा हमारे देश और दुनिया पर अंधकारमय कालरात्रि की भांति मंडरा ही रहा है इसलिए इससे निबटने का कौन सा उपाय सार्थक और सक्षम है ये कहना केवल अनुमान लगाने भर से ज्यादा कुछ नहीं.


अभी तक की जानकारियों और शोध से इतना जरुर पता चला है की ये चीनी वायरस (चूँकि चीन से ही सारे विश्व में फैला) है तो कोरोना वायरस परिवार का सदस्य. यूँ तो कोरोना वायरस दशकों से जाना पहचाना है लेकिन इस परिवार के इस नए सदस्य से मनुष्यों का सामना पहली बार हो रहा है और इसीलिये इसको नया कोरोना वायरस या नावेल कोरोना वायरस का नाम दिया गया है. पहली बार 2019 में सामने आने के कारण इसके नाम के साथ 19 भी जोड़ दिया गया. अंततोगत्वा इस वायरस से होने वाली बीमारी को कोरोना वायरस बीमारी या कोरोना वायरस डिजीज़ के लघु रूप कोविद-19 के नाम से जाना जा रहा है.

पूरे विश्व में फैली इस महामारी को रोकने के लिए जो उपाय विभिन्न देशों में किये जा रहे है उनमें से लॉक डाउन और साथ ही साथ इस वायरस को पकड़ने या संक्रमण का पता लगाने के लिए टेस्ट करना ही अभी तक सबसे अधिक प्रभावी माना जा रहा है. ऐसा इसलिए है क्यूंकि बैक्टीरिया इत्यादि जैविक रोगाणु के विपरीत वायरस या विषाणु के लिए कोई दवा या एंटी बायोटिक कारगर नहीं होती. किसी भी वायरस से निबटने के लिए हमारे अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही कारगर होती है. ये एक अत्यंत या कहें तो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है.

इस तथ्य के फलस्वरूप एक बार संक्रमित होने के बाद इस वायरस से होने वाली बीमारी का उपचार नहीं किया जा सकता. किया जा सकता है तो केवल बीमारी से ग्रसित मनुष्य के जीवन को बचाने के प्रयास और संक्रमित व्यक्ति से अन्य लोगों तक इस बीमारी के विषाणु या वायरस को फैलने से रोकने के प्रयास.

अधिकतर लोगों में अधिकतर जीवाणुओं तथा विषाणुओं से लड़ने के लिए शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता प्राकृतिक रूप से होती है. फलस्वरूप हमारे आस पास के वातावरण में अनेकों प्रकार के जीवाणु तथा विषाणुओं के होने पर भी और उनसे संक्रमित होने पर भी हम अस्वस्थ नहीं होते. उदाहरण के लिए सामान्य फ्लू या जिसे कॉमन कोल्ड कहा जाता है, वो हम् में से अनेकों को लगभग प्रतिवर्ष होती है, कुछ सरदर्द होता है, कुछ बुखार आता है और कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाता है. अक्सर इन परिस्थितियों में जो दवा या एंटी बायोटिक लेते भी है वो इसलिए की कहीं हमारे शरीर के अन्दर चल रहे इस विषाणु प्रतिरोधक युद्ध की आड़ में कोई अन्य जीवाणु प्रवेश करके किसी अन्य रोग से ग्रसित ना कर दे. कई बार तो पता भी नहीं चलता की हमारे शरीर के अन्दर रोगाणुओं से कोई युद्ध चल रहा है और हम अपना जीवन सामान्य रूप से जीते हैं.

ऐसी स्थिति में एक प्रश्न उठता है कि क्या लॉक डाउन करके या संक्रमित लोगों का पता लगा कर इस नूतन-कोरोना-वायरस-19 विषाणु से उत्पन्न हुई महामारी के खतरे को समाप्त किया जा सकता है? मेरी अपनी मान्यता है की इन उपायों से खतरे को कम किया जा सकता है परन्तु समाप्त नहीं.
आईये जानते हैं कैसे?

प्रत्येक विषाणु के संक्रमण को आगे फैलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका इस बात की है की संक्रमण की दर कितनी है? अतएव विभिन्न विषाणुओं अथवा जीवाणुओं द्र्वारा फैलने के तरीके और उनकी वातावरण में जीवित रहने तथा अपने विषैले स्वभाव को बनाये रखने की क्षमता उनकी संक्रमण की दर को निर्धारित करती है. ऐसा माना जा रहा है इस कोरोना वायरस की संक्रमण क्षमता प्रति व्यक्ति 3 है. इसका अर्थ हुआ की प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति सामान्य गतिविधियाँ करते ही प्रत्येक बार लोगों के संपर्क में आकर लगभग अन्य 3 व्यक्तियों को इसका संक्रमण फैला देता है. साधारण सर्दी के वायरस की संक्रमण क्षमता 1.3 आंकी गयी है अर्थात प्रत्येक व्यक्ति अन्य १.3 व्यक्तियों को साधारण सर्दी के विषाणु फैलाता है.

देखने में ये अंतर बहुत छोटा लगता है लेकिन इसका असली असर १०-१२ संक्रमण चक्रों के पूरा होने पर पता चलता है. एक व्यक्ति यदि तीन अन्य को संक्रमित करता है तो एक चक्र पूरा होने के पश्चात कुल चार संक्रमित व्यक्ति हो जायेंगे (पहला एक और उससे संक्रमित हुए तीन अन्य). इसी प्रकार दूसरा चक्र पूरा होने पर ये गणना 16 हो जाएगी, तीसरा चक्र पूरा होने पर 64 और चौथा चक्र पूरा होने पर 256 तथा, पांचवें चक्र के बाद 1024. इस प्रकार 10 चक्र पूरे होने के बाद यह गणना 10 लाख से भी ज्यादा हो जाती है. वहीँ साधारण सर्दी के मामले में 10 चक्र पुरे होने के पश्चात यही गणना 4142 होती है. संक्रमण क्षमता का यह छोटा सा अंतर इस इस नए कोरोना विषाणु को इतना विकराल रूप दे देता है.

प्रायः किसी विषाणु से संक्रमित होने पर हमारी प्रतिरोधक क्षमता उससे निबटने के लिए शरीर में प्राकृतिक रूप से विशिष्ट कोशिकाओं का निर्माण कर लेती है. एक बार ऐसी विशिष्ट कोशिका का निर्माण होने के बाद हमारे शरीर के लिए उस विषाणु से अगली बार लड़ना सरल हो जाता है. इस प्रकार की विशिष्ट प्रतिरोधी क्षमता का निर्माण कृत्रिम रूप से वैक्सीन के माध्यम से किया जाता है. शरीर में ऐसी विशिष्ट कोशिकाओं के न होने से या उनके पर्याप्त मात्र में न होने से विषाणु हावी हो जाते हैं और हमारे शरीर की अन्य कोशिकाओं को नष्ट करने लगते हैं. इनके साथ ही मौके का फायदा उठाते ही अन्य रोगाणु भी हमारे शरीर को संक्रमित कर स्थिति और भी गंभीर बना देते हैं. ऐसी स्थिति में हमारे शरीर को बाह्य सहायता जैसे कि उपयुक्त मेडिकल उपचार न मिलने से परिस्थिति भयावह तथा जानलेवा हो सकती है.

चूंकि यह नूतन कोरोना विषाणु नया है, इसलिए हमारे शरीर में इसका प्रतिरोध करने में सक्षम विशिष्ट कोशिकाओं का निर्माण प्राकृतिक रूप से अभी तक नहीं हुआ है. इस दशा में जब यह वायरस हमारे शरीर को संक्रमित करता है तब हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति उन विशिष्ट कोशिकाओं का निर्माण प्रारंभ करती है. और उसके बाद शुरू होता है हमारे शरीर के अन्दर इस विषाणु और प्रतिरोधी शक्ति के बीच युद्ध. चूंकि वृद्धजनों और बच्चों के शरीर में प्रतिरोधी क्षमता की कमी होती है इसलिए उनके शरीर में यह युद्ध हार जाने का ख़तरा कहीं अधिक है. जो युवावस्था में हैं लेकिन जिनका शरीर कुपोषण का शिकार है या जो अन्य व्यसनों अथवा रोगों से ग्रसित हैं और उसके कारण अपनी प्राकृतिक शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर चुके हैं, उनमें भी इस युद्ध में पराजय का ख़तरा अधिक है. इसके विपरीत जिनकी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ी चढ़ी है, वो संक्रमित होने के बाद भी इस युद्ध में विजयी होने की क्षमता रखते हैं. इस विषाणु की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने वाली वैक्सीन अभी तक कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती यद्यपि अनेको देशों में इसके लिए प्रयोगशालाओं में अनुसंधान किया जा रहा है.

उपरोक्त जानकारी के सन्दर्भ में आईये देखते हैं की लॉक डाउन का क्या परिणाम होगा.
चूँकि यह एक संक्रामक रोग है जिसकी वृद्धि दर बहुत ही अधिक या कहें कि अत्यंत आक्रामक है, थोड़े से लोगों से ही यह विषाणु लाखों लोगों तक फैल जाने की क्षमता रखता है. उन लाखों लोगों में बहुत से वृद्ध जन तथा बच्चे भी होंगे जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने के कारण उनकी प्राणों पर संकट बन आयेगा. लाखों लोग जब बीमार होंगे और अस्पताल पहुंचेंगे तो उनको भर्ती करने के लिए जगह की कमी हो जाएगी, उनका उपचार करने के लिए चिकित्सकों की कमी हो जाएगी. ऐसी दशा में गंभीर रूप से संक्रमित लोगों को प्राथमिकता के आधार पर अस्पतालों में जगह दी जाएगी और बाकियों को वापस लौटा दिया जायेगा. यदि आपकी दृष्टि में इसके अतिरिक्त कोई अन्य उपाय हो तो कृपया अवश्य साझा करें.

जब संक्रमण और भी बढ़ेगा और गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या भी इतनी बढ़ने लगेगी की उनके लिए भी अस्पतालों में जगह, संसाधन और चिकित्सकों की कमी होने लगेगी, तब एक ही उपाय बचेगा. तब गंभीर रूप से बीमारों में भी प्राथमिकता उनको दी जाएगी जिनका जीवन बचा सकने की ज्यादा सम्भावना होगी अर्थात सीमित संसाधनों (जैसे अस्पताल में जगह, ऑक्सीजन, चिकित्सक, वेंटीलेटर इत्यादि) का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जायेगा जिनका जीवन बचने की सम्भावना होगी और जिनकी उपचार के बाद भी येन केन प्रकारेण बचने की सम्भावना कम होगी उनको अस्पतालों से वापस कर दिया जायेगा. यही वो भयावह स्थिति है जिसने पूरे विश्व को और मानवता को झकझोर कर रख दिया है. ऐसे स्थिति इटली जैसे देश में आई बताई जाती है. अर्थात यह केवल कपोल कल्पना नहीं है अपितु इस महामारी से जुड़ी एक भयावह सच्चाई है.

इस परिस्थिति से बचाव का उपाय क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर तो सारा विश्व इस समय मिलकर खोज रहा है. एक उपाय जो अपनाया जा रहा है वो है लॉक डाउन का. इससे सभी जन एक दूसरे से संपर्क में आने से बचेंगे और संक्रमण की दर में कमी होगी. इसका लाभ यह होगा की अस्पतालों में कम रोगी पहुचेंगे और जो पहुचेंगे उनमें से सबको या अधिकांश को चिकित्सा उपलब्ध कराई जा सकेगी. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है की यह एक स्थायी उपाय नहीं है. कारण कि लॉक डाउन को अनिश्चित काल तक नहीं चलाया जा सकता. थोड़े से समय में ही लाखों लोगों के सामने आजीविका से जुड़े सवाल खड़े हो गए हैं, देश में और दुनिया में आर्थिक गतिविधियाँ लगभग ठप्प हो चली हैं. इनसे कुछ समय के बाद अनेकों दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. इसलिए किसी भी सरकार के पास लॉक डाउन एक सीमित उपाय ही हो सकता है. तब प्रश्न उठता है की यदि ऐसी स्थिति है तो फिर लॉक डाउन किया ही क्यों गया? उत्तर उपर्निहित है की यदि ऐसा न किया जाये तो देश में अत्यंत ही कम समय में हजारों की संख्या में लोगों के सम्मुख मृत्यु प्रत्यक्ष रूप में सामने खड़ी होगी. तब अस्पतालों से वापस लौटाने वाली स्थिति प्रत्यक्ष उत्पन्न हो सकती है और इसके उलट यदि संक्रामकता में थोड़ी कमी की जा सके तो अस्पतालों की उपलब्ध क्षमता में ही बीमारी से ग्रसित लोगों का उपचार संभव हो पायेगा. इधर कुआँ उधर खाईं वाली स्थिति में जहाँ कम नुक्सान होने की सम्भावना हो वहां जाने में ही समझदारी है. यही कारण है की हमारे माननीय प्रधानमन्त्री जी ने राष्ट्र के प्रति अपने संबोधन में कहा कि ‘जान है तो जहान है.

लॉक डाउन करने से देश को कुछ समय मिलेगा जिसमें प्रार्थना और उपाय करने चाहिए की हम अपने अस्पतालों की क्षमता में जितना हो सके उतना विस्तार कर लें जिससे ज्यादा से ज्यादा संक्रमित और गंभीर रूप से बीमार लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सके.  इस समय में अधिक से अधिक लोगों तक इस संक्रामक महामारी के लक्षण और इससे बचने के उपायों की जानकारी पहुंचाई जा सके जिससे इसकी संक्रामकता में कुछ कमी आ सके. लॉक डाउन से यह आशा लगाना मूर्खता होगी की इससे नूतन कोरोना वायरस का खात्मा हो जायेगा . हाँ, यह अवश्य संभव है की मानवजाति इस समय में समय रहते इससे निबटने के लिए हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली वैक्सीन का निर्माण कर ले. यदि ऐसा नहीं भी होता तो भी अधिकाँश लोगों में संक्रमण के पश्चात इस महामारी के विषाणु से निबटने के लिए शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता द्वारा प्राकृतिक रूप से विशिष्ट कोशिकाओं का निर्माण कर ही लिया जायेगा और वे लोग इससे होने वाली कोविद-19 नमक बीमारी से उबरकर पुनः स्वस्थ हो सकेंगे.

अब इस लेख के शीर्षक पर आते हैं, कोविद-19 के आगे. इसका अर्थ यह है कि जब लॉक डाउन सीमित उपाय है तब एक न एक दिन इसको हटाना ही पड़ेगा. ऐसा करते ही ये नूतन कोरोना संक्रमण पुनः अपनी आक्रामकता दिखाना शुरू कर सकता है. तो क्या सरकार हर बार लॉक डाउन ही करती रहेगी? मेरी समझ में यह संभव नहीं लगता. तो क्या फिर हजारों लोगों को मरने के लिए सरकार छोड़ देगी? आपको क्या लगता है? किसी भी सरकार के पास क्या उपाय हो सकते हैं वो भी उस परिस्थिति में जबकि हजारों लोग चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी सिर्फ इसलिए प्राण त्याग देंगे क्यूंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम थी. कोई भी सरकार, या संस्था, वैक्सीन के अभाव में कृत्रिम रूप से आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ा सकती.

प्रत्यक्ष है कि सरकार के पास इस समस्या या महामारी से निबटने के उपाय नहीं हैं और न ही हमको ऐसी अनर्गल अपेक्षा रखनी चाहिए. हम दोष चाहें जिसे दें, सच तो यह है कि इस महामारी से निबटने के उपाय हमको स्वयं करने होंगे. माननीय प्रधानमन्त्री जी तो कबसे कह रहे हैं की स्वच्छता पर ध्यान दें, जीवन में स्वच्छता अपनाएं और देश को भी स्वच्छ बनाएं. अब यही स्वच्छता के मंत्र अत्यधिक तत्परता और प्रमुखता के साथ अपने जीवन में हमें अपनाने होंगे. इससे संक्रमण का ख़तरा कम होगा. एक अच्छी जीवन शैली अपनानी होगी जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बने और बढ़े. बस यही एक उपाय है. जबतक इस महामारी के विरुद्ध अधिकांश लोगों की प्रतिरोधक क्षमता प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से विकसित नहीं हो जाती तबतक सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस) के साथ यह नयी जीवन शैली हमारा बंधन भी है और हमारी सच्चाई भी चाहे सरकार लॉक डाउन लगाये या नहीं.

इसी क्रम में यह जानना भी उचित होगा की आज भी मलेरिया जैसी बीमारी से प्रत्येक वर्ष विश्व में लगभग 4 लाख मौतें होती हैं, एड्स जैसी बीमारी से वर्ष 2018 में 7 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई अथवा, विश्व में वर्ष 2018 में लगभग 1 करोड़ लोग तपेदिक जैसे जानलेवा रोग से ग्रसित हुए जिनमें से 12 लाख से अधिक की मृत्यु हुई. तब प्रश्न यह भी है कि इन बीमारीओं के लिए वही चिंता क्यों नहीं की जा रही जितनी की इस नूतन कोरोना विषाणु के लिए और उत्तर है इस विषाणु की आक्रामकता और इससे होने वाले रोग का कोई उपचार न होना.

कतिपय लोग अभी भी इस बात पर बहस कर सकते हैं की यदि अमुक देश से अमुक समय पर आने वाले यात्रियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता हो यह वायरस भारतवर्ष में प्रवेश ही ना पाता. हो सकता है, लेकिन प्रश्न यह भी है की कब तक? विषाणु का विनाश और संपूर्ण जगत से उसको समाप्त कर देना मानव जाति के लिए अभी तो संभव नहीं है, अन्यथा अबतक हम जापानी इन्सेफेलाइटिस जैसी, या मलेरिया जैसी या एड्स जैसी बिमारिओं के रोगाणुओं को विश्व से पूर्णतः समाप्त कर चुके होते. पोलियो जैसे रोग से भी आजतक बचाव का एक ही उपाय है, दो बूँद वैक्सीन की लेकर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना क्यूंकि पोलियो के विषाणुओं को मिटाना हमारे लिए संभव नहीं. इसलिए नूतन कोरोना वायरस के विषाणु आज नहीं तो कल, कभी न कभी हमारे देश में प्रवेश करके वही परिस्थितियाँ उत्पन्न कर ही देते जैसी की आज कर दी हैं. इसलिए ये समय व्यर्थ की बहस का नहीं बल्कि इस वैश्विक महामारी से भारतवर्ष को, विश्व को बचाने का है.

कैसे? बड़ा सरल है, खुद को बचाएँ और दूसरों को भी बचाएँ, मानवता बच जाएगी.

इस चीनी नूतन कोरोना वायरस से बचाव के उपायों पर चर्चा अगले लेख में.

धन्यवाद