कोविद-19
से बचाव
पिछले लेख में हमने
कोविद-19 नामक बीमारी के बारे में कुछ मूल तथ्यों की जानकारी ली थी और चर्चा करी
थी. अब उसी कड़ी में आज चर्चा इस बात पर करते हैं कि इस महामारी से बचाव के क्या
उपाय किये जाने चाहिए.
परन्तु इस चर्चा के
पहले मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ या कोई चिकित्सक
या शोधकर्ता नहीं हूँ. मेरी जानकारी के कई स्त्रोत् हैं जिनमें से कुछ पूर्णतया
सही नहीं भी हो सकते हैं. इसलिए इस लेख में दी गयी जानकारी का उपयोग करने के पूर्व
किसी विशेषज्ञ अथवा किसी अधिकृत संस्था से सलाह अवश्य ले लें.
इस विषाणु से बचाव के
कई स्तर हैं जिनमें से प्रमुख तो तीन ही लगते हैं- पहला सरकार द्वारा अस्पतालों और
अन्य प्रबंध जैसे कि लॉक डाउन (जिसकी चर्चा हमने पिछले लेख में की थी), दूसरा
चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों द्वारा प्रयास और, तीसरा हमारे अपने द्वारा किये
प्रयास. इनमें से भी हमारे स्वयं के द्वारा किये जाने वाले प्रयास अधिक सार्थक
होने की सम्भावना है क्योंकि इस विषाणु को रोकना केवल सरकार या किसी संस्था के
अकेले सामर्थ्य के बाहर की बात प्रतीत होती है.
हम क्या प्रयास कर सकते
हैं उसके लिए पहले इस दुश्मन वायरस के बारे में यह जानना आवश्यक है कि यह फैलता
कैसे है? ये नूतन कोरोना विषाणु हमारे शरीर पर तबतक हमला नहीं
करता जबतक यह हमारे शरीर के अन्दर किसी द्रव्य के साथ न पहुँच जाये जैसे कि आँखों
से या मुंह से या फिर नासिका से. किसी जली या कटी त्वचा में से होकर भी यह विषाणु
हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता हो ऐसा निष्कर्ष मैंने अभी तक तो कहीं नहीं देखा
लेकिन चूंकि अभी इस विषाणु पर शोध चल ही रहा है तो नए तथ्यों के सामने आने पर कोई
आश्चर्य भी नहीं होगा. जो भी हो, सावधानी इतनी लेनी है कि किसी प्रकार यह विषाणु
हमारे शरीर के अन्दर प्रवेश न करे.
शोधकर्ताओं ने यह
निष्कर्ष निकाला है कि यह वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति की छींक अथवा श्वास में उपस्थित
तरल की सूक्ष्म बूंदों में स्थित होकर हवा में बह सकता है. उस संक्रमित हवा में
यदि हम श्वास लेते हैं तो यह विषाणु फिर हमारी नासिका से श्वास नालिका और फेफड़ों में
प्रवेश कर जाता है जहाँ यह घोर न्यूमोनिया के लक्षण उत्पन्न करता है. इस कारण से
संक्रमित व्यक्ति के लक्षणों में एक उसका सांस लेने में कठिनाई होना भी है.
अब श्वास को रोक कर
रखना तो संभव नहीं है और न ही आती हुई छींक को रोक पाना. इसलिए संक्रमित व्यक्ति
पर ही यह जिम्मेदारी आ पड़ती है कि वह दूसरों तक इस विषाणु को फैलने से रोके, अपनी छींक को ऐसी दिशा में और ऐसे प्रकार से निकाल कर कि उससे विषाणु हवा में
कम से कम पहुंचें. इसके लिए जानकारों ने विधि सुझाई है कि छींकें तो अपनी कुहनी से
नाक और मुंह ढक कर. इससे छींक के अधिकांश कण हमारी कुहनी पर ही रुक जायेंगे.
प्रश्न यह कि कुहनी क्यों जबकि अपनी हथेली का उपयोग कहीं अधिक सरल और प्राकृतिक
है. और उत्तर यह कि विशेषज्ञ आपको अपनी हथेलियों या उँगलियों में इस विषाणु को
नहीं होने देना चाहते हैं. उसके कारण पर अभी आगे चर्चा करते हैं लेकिन अभी तो यह
कि यदि कुहनियों का उपयोग नहीं कर सकते तो कम से कम किसी रुमाल या टिश्यू पेपर का
उपयोग अवश्य करें और उपयोग के बाद उसको किसी बंद ढक्कन के कूड़ेदान में फेंक दें.
बंद ढक्कन क्यों? और फेंक क्यों दें? ऐसा इसलिए कि विषाणु को हवा में आने से रोकना है न, तो खुले में तो नहीं फेंक
सकते और जितनी जल्दी अपने पास से हटा दें उतना संक्रमण कम होगा. कुल मिला कर कुहनी
में छींकनेवाला सुझाव मुझे सबसे कारगर लगता है.
एक दूसरा उपाय भी है, चेहरे पर मास्क पहनने का. लेकिन ये थोडा पेचीदा है,
आईये बताता हूँ. चेहरे पर मास्क लगाने की सलाह उनके लिए है जिनको खांसी या जुखाम
हो चुका है और उनकी छींक या खांसी के कणों से दूसरों को बचाना है. चेहरे पर मास्क
आपकी छींक के कणों को वहीँ रोक लेता है, उनको हवा में फैलने से बचाता है.
इसी कारण से किसी स्वस्थ व्यक्ति, जिसकी छींक में नूतन कोरोना वायरस के कण नहीं
उसको मास्क पहनने की आवश्यकता नहीं. हालाँकि स्वस्थ व्यक्ति भी मास्क पहन कर
दूसरों को अपनी छींक अथवा खांसी से बचा सकता है. लेकिन मास्क के साथ कुछ सावधानी
भी जुड़ी है नहीं तो लेने के देने पड़ सकते हैं. मास्क पहनने पर हमारी अपनी श्वास में वाष्प के कण मास्क
को भिगो देते हैं और श्वास की गर्मी के साथ मिलकर भीगे हुए मास्क की यह स्थिति
विभिन्न रोगाणुओं को पनपने के लिए अत्यंत अनुकूल स्वर्ग जैसी है. अब कोरोना आये या
जाये, बाकी रोगाणुओं की तो चांदी हो गयी समझिये. इसीलिये
विशेषज्ञ एक बार के या फिर कुछ घंटों के उपयोग के बाद ऐसे मास्क को बदल देने की सलाह
देते हैं.
अब रही बात कि दूसरों
की तो ठीक मगर अपनी स्वयं की सुरक्षा के लिए तो मास्क पहन ही लें ना? तो मामला असल में यह है कि नूतन कोरोना विषाणु बहुत ही छोटे आकार का है, हमारे बाल की मोटाई से भी लगभग 500
गुणा छोटा और इसलिए साधारण मास्क से इसको रोक पाना संभव
नहीं लगता. इसको रोकने के लिए विशेष मास्क ही कारगर पाए गए हैं जो कि अत्यंत छोटे
कणों को रोक पाने में समर्थ हों. इस प्रकार के मास्क की एक विशिष्ट कोटि निर्धारित
की गयी है और इनको एन-95 श्रेणी के मास्क से जाना जाता है. जो चिकित्सा सेवा में
लगे लोग हैं उनके लिए तो और भी विशेष मास्क की आवश्यकता पड़ सकती है.
इन सबके बीच एक अत्यंत
गंभीर समस्या यह भी है कि इस नूतन कोरोना वायरस से संक्रमित होने के लक्षण कई बार
कुछ समय के बाद ही पता चलते हैं या फिर हो सकता है कोई लक्षण दिखाई ही न पड़ें. ऐसी
अवस्था में कोई संक्रमित व्यक्ति स्वयं को स्वस्थ मानकर करके निश्चिंत होकर दूसरों
में इस विषाणु को फैला सकता है. यहाँ तक कि दूसरे लोग भी उस संक्रमित व्यक्ति को
स्वस्थ मानकर असावधानी रख सकते हैं जिससे उनके स्वयं संक्रमित होने का ख़तरा और भी
अधिक हो जाता है.
निष्कर्ष यह कि
संक्रमित व्यक्ति को मास्क अवश्य पहनना चाहिए जिससे वह दूसरों को संक्रमण से बचा
सके. परन्तु मास्क पहनने के लिए सावधानियों को भी दृष्टि में रखना चाहिए. और जो
स्वयं को असंक्रमित एवं स्वस्थ अनुभव करते हों उनको भी एक संक्रमित व्यक्ति के
जैसे ही सावधानी रखनी चाहिए. अर्थात हम सभी को ऐसी सावधानी रखनी है मानो हम स्वयं
संक्रमित हैं अथवा आस-पास भी सभी संक्रमित हैं. यह एक विचित्र परिस्थिति है और हम
सबके लिए एक बिलकुल नया अनुभव. जिनको जानते समझते हुए संक्रमित लोगों के पास जाकर
काम करना ही है, जैसे कि चिकित्सा सेवा से जुड़े
लोग, उनको तो विशिष्ट एन-95 श्रेणी के मास्क का ही उपयोग
करना चाहिए.
एक अन्य उपाय भी सुझाया
गया है दूरी बना कर रखने का. शोधकर्ताओं ने पाया है ये यह विषाणु वजन में कुछ भारी
होने के कारण हवा में अधिक देर तक नहीं तैरता और लगभग एक मीटर की दूरी तक जाकर
(यदि कोई स्पष्टतः खांस या छींक नहीं रहा) नीचे भूमि पर गिर जाता है. ऐसी अवस्था
में सभी लोग यदि कम से कम एक मीटर की दूरी आपस में सदा बना कर रखें तो किसी दूसरे
संक्रमित व्यक्ति से इस संक्रमण को ग्रहण करने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है.
इसी उपाय को सोशल डिस्टेंस अथवा सामाजिक दूरी का नाम दिया गया है. हालाँकि कुछ ऐसी
सूचनाएं कतिपय स्त्रोत से आती हैं कि यह विषाणु हवा में लगभग आठ घंटे तक तैरता रह
सकता है. यदि ऐसा है तो फिर सोशल डिस्टेंस या सामाजिक दूरी भी बहुत कारगर साबित
नहीं होने वाला. परन्तु अभी के अनुभवों से तो ऐसा लगता है कि सामाजिक दूरी का उपाय
कारगर ही है. कारण है कि विश्व के अनेकों देश और यहाँ तक कि चीन भी, जहाँ से यह विषाणु
पनपा और पूरे विश्व में फैला, सामाजिक दूरी के उपाय अपना कर ही
इससे लड़ पा रहे हैं.
अभी तक के उपरोक्त बचाव
के उपाय इस बात पर निर्भर हैं कि हम श्वास लेते समय क्या सावधानी रख सकते हैं
जिससे यह विषाणु हमारी श्वास नलिका में हमारी नासिका के रास्ते प्रवेश न कर सके.
किन्तु यही एक रास्ता नहीं है विषाणु के हमारे शरीर में घर करने का. पाया गया है
कि हमारी आँखों और मुख के द्वार से भी यह विषाणु हमला कर सकता है. और इन दोनों
जगहों तक इसके पहुँचने का माध्यम है हमारे अपने हाथ. जी हाँ, शोधकर्ताओं ने पाया है कि हम प्रायः अनजाने ही अपने हाथों से अपने मुख और
अपनी आँखों को छूते रहते हैं. ऐसी अवस्था में यदि यह विषाणु हमारे हाथों में किसी
तरह पहुंचा हो तो उसके द्वारा यह हमारे मुख और आँखों तक भी निष्कंटक पहुँच सकता
है.
इस अवस्था से बचने का
सबसे सरल उपाय तो है कि अपने हाथों से अपने मुख,
अपना चेहरा या अपनी आँखों को न छुएं. परन्तु यह अनजाने में स्वतः होने वाली क्रिया
है अतएव यह उपाय अधिक व्यावहारिक नहीं जान पड़ता. इससे अच्छा तो यह उपाय है कि हम
अपने हाथों में इस विषाणु को आने ही न दें.
पाया गया है कि यह
विषाणु संक्रमित व्यक्ति के शरीर से खांसी,
छींक या अन्य किसी प्रकार से, जैसे कि संक्रमित व्यक्ति के हाथों से, निकल कर हवा में रहता है और फिर आस पास की धरती और दूसरी वस्तुएं जो उस
व्यक्ति ने अपने हाथों से छुई हैं उनपर पर ठहर जाता है. जब हम उन वस्तुओं के
संपर्क में आते हैं तो यह विषाणु तेजी के साथ हमारे शरीर से चिपक सकता है. चूंकि
संपर्क में आने का एक बड़ा माध्यम हमारे अपने हाथ हैं इसलिए यह विषाणु हमारे हाथों
में ठहर कर फिर हमारे शरीर में अन्दर प्रवेश पाने का इंतज़ार करता है. इसको हमारे
हाथों में ना आने देने के लिए आवश्यक है कि संक्रमित वस्तुओं को न छुएं.
परन्तु
यहाँ एक कठिनाई ये है कि यह विषाणु आँखों को दिखाई नहीं देता, अदृश्य है. तो जाने अनजाने में किसी न किसी संक्रमित वस्तु को हम अपने हाथों
द्वारा संपर्क में लेंगे ही. और तब बचाव का एक ही उपाय है कि अपने हाथों से किसी
भी तरह इस विषाणु को हटाना. यही कारण है कि बार बार अपने हाथों को साबुन से धोने की
सलाह दी जा रही है. हाथ भी केवल खाना पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अच्छी तरह से बीस
सेकंड तक रगड़ रगड़ कर साबुन से धोये और उसके बाद पानी से साफ़ करें. साबुन न होने की
अवस्था में सैनीटाईज़र का उपयोग किया जा सकता है लेकिन उसमें भी यदि अल्कोहल की
मात्र ६५% से कम है तो कोई फायदा नहीं. इसके अतिरिक्त सैनीटाईज़र महँगा भी आता है
और आसानी से उपलब्ध भी नहीं हो पा रहा है,
इसलिए साबुन से हाथ धोना ही एक बेहतर उपाय दिखाई देता है.
ध्यान देने योग्य बात
ये है कि सभी लोगों को संक्रमित मानकर ही व्यवहार करना है. अर्थात अपने बचाव के
सभी उपायों में कभी भी, किसी के लिए भी ढील नहीं देनी है,
चाहे सामने वाला स्वस्थ ही क्यों न जान पड़ता हो. इसी प्रकार से जो वस्तुएं बाहर से
लायी जाती हैं, और इस कारण से जिनके दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में
आये होने की संभावना है, उनको साफ़ करके (जैसे साबुन पानी
में लगभग १ मिनट भिगो कर और फिर पानी से साफ़ करके) इस्तेमाल करना ज्यादा ठीक होगा.
जिन वस्तुओं को इस प्रकार धोना संभव नहीं,
जैसे समाचार पत्र, उनको कुछ घंटों के बाद ही छुएं
जिससे तबतक उनपर स्थित विषाणु के कण अपनी रोग क्षमता को अधिकांशतः कम कर चुके हों.
और उनके उपयोग के बाद वापस अपने हाथ साबुन से धो लें. यह विषाणु कई प्रकार की सतह
जैसे कागज़, लोहा, प्लास्टिक इत्यादि पर काफी समय तक रह सकता है
और अभी तक इस विषय पर शोध चल ही रहा है.
इस कोविद-19 महामारी से
बचने के लिए उपायों को संक्षिप्त में क्रम बद्ध कर लेते हैं
क्या
करें :
1. हाथों को साबुन से कम से कम बीस सेकंड तक दिन में कई बार धोएं. साबुन न होने
की अवस्था में ६५% अल्कोहल मात्रा वाले सैनीटाईज़र का प्रयोग करें.
2. लोगों से कम से कम एक मीटर की दूरी बना कर ही खड़े हों. इसी क्रम में हाथ
मिलाने या गले मिलने के स्थान पर नमस्कार से काम चलायें.
3. छींक या खांसी आने पर अपने हाथ की कोहनी से ढक कर छींकें या खासें.
4. सर्दी जुखाम होने पर मास्क अवश्य लगायें. जब भी मास्क पहनें उससे सम्बंधित
सावधानियों का पालन करें. यदि स्वस्थ हों तो भी मास्क लगा सकते हैं परन्तु यह सदैव
दूसरों के बचाव के लिए ही है. यदि स्वयं को बचाना है तो एन-95 श्रेणी का ही मास्क
उपयुक्त है.
5. बाहरी वस्तुओं को जहाँ तक संभव हो धो कर प्रयोग करें. संभव न होने पर उनका
प्रयोग कम से कम करें और सावधानी रखें.
6. अस्वस्थ होने की अवस्था में घर पर ही रहें और दूसरे लोगों के कम से कम संपर्क
में आयें. ऐसा कम से कम १४ दिनों तक लगातार करें.
7. घर में किसी के अस्वस्थ होने (सर्दी, बुखार,
सांस लेने में कष्ट इत्यादि) पर जहाँ तक हो सके दूरी बना कर रहे और इस्तेमाल में
आने वाली सभी वस्तुओं को संक्रमित मान कर ही सावधानी रखें.
क्या
ना करें
1. भीड़-भाड़ वाली स्थिति उत्पन्न ना करें और ऐसी जगहों पर जाने से बचें. अनावश्यक
रूप से घर के बाहर न निकलें.
2. खुले में न थूकें, न गन्दगी फैलाएं.
3. धूम्रपान, शराब इत्यादि पदार्थों जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता
कम होती है, के सेवन से बचें.
4. यदि मास्क लगते हों तो उसको अपने हाथों से मुख के सामने वाले भाग में ना छुएं.
केवल उसके इलास्टिक डोरी वाले हिस्से से पहनें या उतारें.
ये बहुत ही साधारण से
दिखने वाले उपाय हैं लेकिन इनका इस महामारी की रोकथाम में बहुत बड़ा योगदान है.
जैसा कि मैंने पिछले लेख में आशंका जताई थी कि इस महामारी का प्रकोप तबतक चलने
वाला है जबतक हम इसकी प्रतिरोधक क्षमता नहीं पा लेते,
इसलिए इन उपायों का उपयोग एक लम्बे समय तक करने की आवश्यकता हो सकती है. ये समय
कितना लम्बा होगा वह इस पर निर्भर करेगा कि यह महामारी कितना भयावह रूप लेती है, और यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितनी सावधानी रखते हुए उपरोक्त उपायों
को अपनाते हैं.
इसलिए एक बार पुनः
कहूँगा कि हम अपने को स्वस्थ रखें, स्वयं भी बचें और दूसरों को भी
बचाएँ.
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