वेंटीलेटर और कोविद-19
पिछले लेख में हमने
देखा था किस प्रकार कोरोना विषाणु से बचाव किया जा सकता है. उसमें हमने अधिकतर
स्वयं द्वारा किये जाने वाले प्रयासों के बारे में जाना था लेकिन अस्पतालों में इस
बीमारी से निपटने के क्या उपाय किये जा सकते हैं इसपर चर्चा नहीं करी थी. उस कड़ी
को आगे बढ़ाते हुए आज हम वेंटीलेटर यानि संवातक के बारे में जानेंगे और ये भी जानने
का प्रयास करेंगे कि कोविद-19 के सन्दर्भ में यह क्यों इतना महत्वपूर्ण बन गया है.
परन्तु इस चर्चा के पहले मैं
स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ या कोई चिकित्सक या शोधकर्ता नहीं हूँ. मेरी
जानकारी के कई स्त्रोत् हैं जिनमें से कुछ पूर्णतया सही नहीं भी हो सकते हैं.
इसलिए इस लेख में दी गयी जानकारी का उपयोग करने के पूर्व किसी विशेषज्ञ अथवा किसी
अधिकृत संस्था से सलाह अवश्य ले लें.
अबतक हमने जाना कि कोरोना विषाणु जब हमारे शरीर में
घर कर लेता है तब यह श्वास नालिका और फेफड़ों में जाकर हमारी स्वस्थ कोशिकाओं को
नष्ट करके गंभीर निमोनिया के लक्षण उत्पन्न करता है. चूंकि विषाणु का कोई उपचार
नहीं है इसलिए हमारे शरीर की अपनी प्रतिरोधक क्षमता को ही सारी लड़ाई लड़नी होती है.
गंभीर निमोनिया के रोगी श्वास में अत्यधिक कठिनाई का अनुभव करते हैं. ऐसा इसलिए
होता है कि हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली हमारे फेफड़ों में अधिक से अधिक श्वेत रक्त
कणों (जो कि विषाणुओं से लड़ते हैं) संचार करने लगती है. इससे फेफड़ों में सुजन आने
के साथ पानी भरने जैसी समस्या हो सकती है जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई आती है.
एक प्रकार से रोगी की श्वास प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होती है और रोगी
मरणासन्न अवस्था में आ सकता है. जब सांस ही नहीं ले सकेंगे तो रोग के विषाणु से
कैसे लड़ेंगे. दुर्भाग्य से कोरोना विषाणु से होने वाली कोविद-19 बीमारी से विश्व
में अधिकांशतः मृत्यु का कारण यही रहा है.
हमारे अपने देश के अनुभव में भी किसी रोगी को संवातक
उपकरण पर रखने का अर्थ उसको किसी प्रकार से जीवित रखने का प्रयास होता है जो इस
बात का द्योतक है कि रोग अत्यधिक प्रबल है और रोगी के बचने की सम्भावना कम ही लगती
है. परन्तु कोरोना जैसे विषाणु के रोग से बचने के लिए ये संवातक ही अँधेरे में आशा
की किरण की भांति है. हालाँकि इसके उपयोग की आवश्यकता उन्हीं रोगियों को होती हैं
जिनकी प्रतिरोध क्षमता कम होने के कारण इस रोग के लक्षण और प्रभाव उनमें अत्यधिक
प्रबल एवं प्रखर हों. परन्तु दुर्भाग्य यह है कि ऐसे रोगियों की संख्या कम नहीं
है.
नीचे दी हुई तालिका से आपको कुछ आभास होगा कि विश्व
के कई अन्य देश जहाँ पर इस महामारी का प्रकोप फैला है उनके मुकाबले भारत की क्या
अवस्था है? पहली बात तो ये कि लगभग सभी देशों में कुल जनसँख्या का एक बहुत ही मामूली
प्रतिशत (कहीं पर भी यह आंकड़ा अभी 1% भी नहीं पहुंचा है) इस महामारी से प्रभावित है.
दूसरी ओर जो इस विषाणु की चपेट में आ भी गए हैं उन् रोगियों में मृत्यु दर कहीं
अधिक है और कहीं बहुत ही कम. उदहारण के लिए स्पेन और इटली जैसे देशों में मृत्यु
का प्रतिशत कहीं अधिक है वहीँ जर्मनी में यह बहुत कम है. इसके विभिन्न कारण हो
सकते हैं और उनपर चर्चा अलग से करी जा सकती है.
यहाँ इस तालिका का उद्देश्य यह
दिखाना है कि भारत में अभी बाकी महामारी ग्रसित देशों के अपेक्षा रोगी प्रतिशत बहुत
ही कम है और रोगियों की मृत्यु का प्रतिशत भी कम है. अर्थात हमारे देश में सही समय
पर या यूँ कहें कि समय रहते सोशल डिस्टेंस अथवा सामाजिक दूरी जिसको अब भौतिक दूरी
का भी नाम दिया जा रहा है, बनाने के कारण इस विषाणु का प्रसार और इससे ग्रसित
लोगों की संख्या को बहुत सफलता के साथ रोका जा सका है. किन्तु यह अभी की स्थिति है
और इस महामारी में थोड़ी सी चूक से परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती, ऐसा दूसरे देशों के अनुभवों से ज्ञात होता है.
देश
|
जनसँख्या
(करोड़ों में)
|
कोरोना
प्रभावित जनसंख्या (हजारों में)*
|
कोरोना
प्रभावित जनसंख्या प्रतिशत
|
कोरोना से
मृत्यु*
|
कोरोना से
मृत्यु का प्रतिशत रोगियों के सापेक्ष
|
अमेरिका
|
33
|
245
|
0.074%
|
6074
|
2.48%
|
चीन
|
139
|
83
|
0.006%
|
3326
|
4%
|
इटली
|
6.05
|
115
|
0.19%
|
13915
|
12.1%
|
स्पेन
|
4.67
|
112
|
0.24%
|
10348
|
9.24%
|
जर्मनी
|
8.3
|
85
|
0.1%
|
1107
|
1.3%
|
फ्रांस
|
6.69
|
60
|
0.09%
|
4516
|
7.52%
|
ईरान
|
8.12
|
50
|
0.06%
|
3160
|
6.32%
|
भारत
|
135
|
2.5
|
0.0002%
|
72
|
2.9%
|
*(जानकारी लगभग 3
अप्रैल तक की)
शोधकर्ताओं के अनुसार इस महामारी में मृत्यु की औसत
दर लगभग 5% है. यदि हम यह मान लें कि भारत में मृत्यु की दर अभी जैसी लगभग 3% ही
रहेगी और यह भी कि हमारे देश में जर्मनी की भांति संक्रमण की दर भी 0.1% से अधिक
नहीं होगी तो इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में लगभग 13 लाख से अधिक लोग संक्रमित
होंगे और उनमें से लगभग 40,000 की मृत्यु होने की आशंका है.
यह तो तब है जब हम कम संक्रमण दर और मृत्यु दर को लेकर अनुमान लगा रहे हैं.
अब आते हैं विषय के तत्त्व पर. जो 13 लाख से ज्यादा लोगों
के संक्रमित होने की आशंका है, उनमें से यदि 25% को भी संवातक की
आवश्यकता पड़ गयी और यह आवश्यकता रोग के लक्षण प्रकट होने की समान दर से लगभग एक
माह तक चलें (यानी प्रतिदिन लगभग 11,250 रोगी) और प्रत्येक ऐसे रोगी को
लगभग 20 दिन तक संवातक उपकरण की आवश्यकता पड़ी तो कुल मिलकर इसका अर्थ यह निकला कि
हमारे देश में 2,25,000 से अधिक सम्वातकों की आवश्यकता है.
कल्पना कीजिए कि यदि यह
संख्या 25% के स्थान पर 45% हो अथवा संक्रमण दर ही इटली की भांति 0.1% के स्थान पर
0.2% हो गयी; अथवा हमारे सारे अनुमानों को झुठलाते हुए संक्रमण दर 0.5% हो गई? तब हमारी संवातकों की आवश्यकता कहीं अधिक होगी. एक अनुमान के अनुसार हमारे
पूरे देश में इस समय संवातकों की कुल संख्या लगभग 40,000 हज़ार है.
वेंटिलेटर अथवा सम्वातक उपकरण को ब्रीथिंग
मशीन या रेस्पिरेटर या मैकेनिकल वेंटिलेटर इत्यादि नामों से भी संबोधित किया जाता
है. आम तौर पर वेंटीलेटर के प्रयोग के लिए मुंह अथवा नाक (तथा कभी-कभी गले में एक
छोटे से कट के माध्यम) से एक ट्यूब श्वास नली में डाली जाती है। इसी के माध्यम से
वेंटीलेटर फेफड़ों में ऑक्सीजन भेजता तथा कार्बन-डाइऑक्साइड बाहर निकलता है. यह एक
जटिल प्रक्रिया है जिसे इंट्यूबेशन कहते हैं और इससे विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाता
है.
वेंटिलेटर ‘नेगेटिव
दाब वेंटीलेटर’ एवं ‘पॉजिटिव
दाब वेंटीलेटर’ दो प्रकार के हो सकते हैं. इन दोनों प्रकारों में से नेगेटिव दाब वाला
वेंटीलेटर रोगी की छाती में लगाते हैं जिससे उससे उसकी छाती ऊपर को उठती है और
फैलती है जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों में अन्दर प्रवेश करती है. नेगेटिव दाब हटाने के
चक्र में छाती वापस नीचे जाती है जिससे सांस बाहर निकलती है. इसके उलट पॉजिटिव दाब
वेंटीलेटर में उपकरण हवा का एक सकारात्मक दाब बनाता है जिससे हवा अथवा ऑक्सीजन फेफड़ों
के अन्दर जाती है, बिलकुल जैसे एक गुब्बारे में हवा
भरी जा रही हो. जब यह पॉजिटिव प्रेशर या दाब हटा देते हैं तो हवा फेफड़ों से बाहर
निकल जाती है.
संवातक एक महंगा उपकरण है और इसकी लागत 10-12 लाख
रूपए तक होती है.
वैसे तो वेंटिलेटर के कारण दर्द या पीड़ा का अनुभव
नहीं होता है परन्तु रोगी की श्वास नलिका में गयी श्वास ट्यूब कुछ असुविधा का कारण
बन सकती है. इसके अतिरिक्त यह बात करने और खाने की आपकी क्षमता को भी प्रभावित
करती है. भोजन के स्थान पर रोगी की नस में डाली गई ट्यूब या नलिका के माध्यम से पोषक
तत्व (जैसे ग्लूकोज़) दिया जा सकता है अथवा उसके लिए अलग से एक ट्यूब जिसे फीडिंग
ट्यूब कहते हैं, के माध्यम से तरल भोजन दिया जा
सकता है. वेंटीलेटर के उपयोग से कुछ अन्य खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है जैसे
अन्य जैविक रोगाणुओं अथवा विषाणुओं द्वारा श्वास ट्यूब के माध्यम से संक्रमण, अथवा
त्वचा के संक्रमण अथवा, रोगी के रक्त में थक्के जमना इत्यादि. अतएव मशीन तथा रोगी
की स्थिति पर दृष्टि बनाये रखने के लिए लगातार प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता
होती है. इस कारण से भी यह एक महंगी प्रक्रिया है.
चूंकि कोविद-19 की
महामारी पुरे विश्व में फैली है और विश्व के सभी देश वेंटीलेटर मशीन की आवश्यकता
को देखते हुए इसकी खरीद में लगे है, एवं वेंटीलेटर विश्व में कुछ ही
कंपनियां बनाती हैं जिनकी प्रति वर्ष क्षमता भी सीमित है. इन कारणों से और
वेंटीलेटर की कुल आवश्यक संख्या अत्यधिक होने से हमारे देश में भी स्वदेशी
वेंटीलेटर बनाने अथवा वेंटीलेटर का एक सस्ता सरल विकल्प खोजने के अथक प्रयास किये
जा रहे हैं. एक सस्ता विकल्प जिसपर काम किया जा रहा है वो है एम्ब्यु बैग (इसको
बैग वाल्व मास्क कहा जाता है).
एम्ब्यु बैग का उपयोग प्रायः आपातकाल में (जैसे कि
एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल ले जाते समय) रोगी को सांस लेने में सहायता के लिए किया
जाता है. इसमें एक प्रशिक्षित व्यक्ति साइकिल के पंप की तरह ही गुब्बारे जैसे बैग
को दबा दबा कर मास्क से रोगी के फेफड़ों में हवा भरता है और श्वास लेने में सहायता
करता है. प्रयास इस बात के किये जा रहे हैं कि ये प्रक्रिया बिजली एवं मोटर तथा वाल्व इत्यादि
के द्वारा स्वचालित बनायीं जा सके जिससे कि नर्स बस बैग में हवा भरते भरते थक न
जाए. इस प्रकार से ये वेंटीलेटर का एक सस्ता कामचलाऊ विकल्प बन सकता है जिसको अधिक
मात्रा में त्वरित गति से देश में ही निर्मित भी किया जा सकता है.
स्वदेशी वेंटीलेटर के
निर्माण और लगने वाले समय और आने वाली कठिनाई को दृष्टि में रखकर और विदेशों से
इसकी आपूर्ति के सम्बन्ध में आने वाली कठिनाई को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है
कि इस उपकरण की आवश्यकता जितनी कम से कम लोगों को पड़े उतना अच्छा, जिससे कि सीमित
संख्या के होने पर भी वेंटीलेटर की सुविधा उनको अवश्य उपलब्ध हो सके जिनको
दुर्भाग्यवश इसकी आवश्यकता पड़ ही जाती है. इसके लिए यह आवश्यक है कि कोरोना विषाणु से
संक्रमण की दर को जितना कम से कम किया जा सके उतना हम करें और उसके लिए सामाजिक
दूरी और स्वच्छता के नए और कठिन नियमों का पालन करने के लिए जबतक आवश्यक हो तब तक तत्पर
रहे.
अगले लेख में हम चर्चा
करेंगे कि जब यह लॉक डाउन की स्थिति सरकार द्वारा हटाई जाएगी तब क्या परिस्थितियाँ
उत्पन्न होने की सम्भावना है और उस दशा में देश के और मानवता के प्रति हमारा क्या
कर्त्तव्य होना चाहिए.
जय भारत.
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