पिछले लेख के अंत में मैंने यह कहा था कि इस बार हम लॉक
डाउन से उत्पन्न हुई परिस्थितियों एवं इसके हटाये जाने के पश्चात हमारे कर्तव्यों
पर चर्चा करेंगे. चूंकि यह एक अत्यंत ही विस्तृत विषय है एवं संवेदनशील भी अतएव
इसपर चर्चा हम दो भागों में करेंगे.
भाग एक में मेरे विचार आपके सम्मुख प्रस्तुत
हैं परन्तु इस के पहले मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ, चिकित्सक, शोधकर्ता
अथवा नीति विशेषज्ञ नहीं हूँ. मेरी जानकारी के कई स्त्रोत् हैं जिनमें से कुछ
पूर्णतया सही नहीं भी हो सकते हैं. इसलिए इस लेख में दी गयी जानकारी मेरे निजी
विचार हैं तथा इनका उपयोग करने के पूर्व किसी विशेषज्ञ अथवा किसी अधिकृत संस्था से
सलाह अवश्य ले लें.
आधुनिक दर्शनशास्त्र
में नैतिकता की व्याख्या एवं प्रतिपादन के लिए प्रायः एक अत्यंत विचित्र उदाहरण का
प्रयोग किया जाता है. यह कुछ इस प्रकार है.
कल्पना कीजिये कि आप एक
रेल पथ के समीप खड़े हैं. आप देखते हैं कि एक ओर से बड़ी तीव्र गति से एक रेल का
डिब्बा धड़-धड़ चला आ रहा है. दूसरी ओर कुछ आधा दर्जन व्यक्ति उसी रेल की पटरी पर
खड़े हैं. यदि कुछ न किया गया तो डिब्बे से वे कटकर मर जायेंगे. उस डिब्बे को रोकना
संभव नहीं है क्यूंकि उसमें कोई ब्रेक नहीं हैं. परन्तु आपके समीप ही एक रेल पथ
लीवर है जिसको खींचने से पटरी की दिशा बदल जाएगी और ट्रेन का वह डिब्बा उस दूसरी
दिशा में चला जायेगा. तभी आप देखते हैं कि दूसरी दिशा में तो पटरी के ऊपर एक बच्चा
खेल रहा है और यदि आप ट्रेन के उस डब्बे की दिशा बदलते हैं तो डब्बे की टक्कर से
उस बच्चे की मृत्यु अवश्यम्भावी है. प्रश्न यह है कि अब आप क्या करेंगे अथवा आपको
क्या करना चाहिए?
आपका उत्तर चाहे जो भी
हो, एक बात स्पष्ट है. इस प्रश्न का कोई सही उत्तर नहीं
हो सकता है. जैसे ही आप इसका कोई भी उत्तर देते हैं,
उसके उलट उत्तर कतिपय लोगों को अधिक सटीक लग सकता है और उनके तर्क भी कोई गलत नहीं
होंगे. इसी प्रकार जीवन में अनेकों चुनाव करने पड़ते हैं जो प्रायः अत्यंत सरल होते
हैं परन्तु कभी कभी अत्यंत ही कठिन. उदाहरण के लिए आप कोई चलचित्र देखने जाना
चाहते हैं परन्तु आपके पास पैसे नहीं हैं. तभी आप अपने मित्र के बटुए से गिरे हुए
रूपए देखते हैं. आप उसको वो रूपए लौटा सकते हैं या फिर स्वयं रखकर चलचित्र देखने
जा सकते हैं. ऐसे स्थिति में आप क्या करेंगे? एक चुनाव यह हो सकता है कि चलचित्र
देखने चले जायेंगे और मित्र के रूपए भी बाद में उधार की तरह वापस कर देंगे. क्या
यह सही होगा? क्या होगा अगर आपको पता हो कि वह रूपए आपके मित्र ने
अपनी बीमार माता के उपचार के लिए रखे हैं. क्या तब भी आप उन रुपयों को उधार की भाँति
रखकर चलचित्र देखने जायेंगे? और इससे भितर यदि वो रूपए आपको अपनी
परीक्षा की फीस के लिए चाहिए और आपके मित्र को अपनी माता के उपचार के लिए, तब आपका निर्णय क्या होगा?
यह स्पष्ट है कि जीवन
में इस प्रकार के प्रश्नों के सरल उत्तर प्रायः नहीं हुआ करते हैं. हमारे पूर्वज
भी इस प्रकार के प्रश्नों से उलझते रहे हैं. इधर कुआँ उधर खाईं वाली कहावत तो
अधिकतर लोगों को ज्ञात है ही. कुछ इसी प्रकार की स्थिति उत्पन्न हुई है हमारे देश
के सम्मुख कोरोना नामक विषाणु के कारण. हमारी सरकार को कुछ कठिन निर्णय लेने पड़े
हैं जिनका कोई सरल उत्तर सही या गलत के रूप में करना अत्यंत ही कठिन है. उनमें से
एक निर्णय लॉक डाउन का भी है.
कल्पना कीजिये कि आप इस
देश की सरकार में एक प्रमुख मंत्री हैं. आपकी बात का,
आपके विचारों का महत्व है और देश विदेश से जुड़े नीतिगत निर्णयों में आपकी सलाह को
बहुत गंभीरता से लिया जाता है. विदेशों से कोरोना के कारण भयावह स्थितियों की
सूचनाएं लगातार मिल रही है वहीँ कतिपय देश इससे कुछ अधिक चिंतित प्रतीत नहीं होते
दीखते. विषाणु के सम्बन्ध में कोई बहुत अधिक या सटीक जानकारी चिकित्सकों या मेडिकल
विशेषज्ञों के पास नहीं है. अभी इस विषाणु पर शोध चल ही रहा है और कतिपय देशों के
अनुभव से ऐसा प्रतीत होता है कि लॉक डाउन
जैसी स्थिति में इस विषाणु का प्रकोप कुछ कम होता लगता है. कुछ लोगों का मानना है कि
भारत में इस विषाणु से बचाव के लिए तुरंत
लॉक डाउन कर देना चाहिए. वही कुछ अन्य लोगों का मानना है कि लॉक डाउन कर देने से हजारों
लाखों लोगों के सामने उनकी रोज़ी रोटी का प्रश्न खड़ा हो जायेगा और डर इस बात का है कि
उनके सामने भुखमरी के जैसी स्थिति न हो जाये. वहीँ लॉक डाउन करने की सलाह देने
वाले शीघ्रता की याचना इस तर्क से कर रहे हैं कि यदि समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो लाखों लोगों को
इस विषाणु के संक्रमण और फलस्वरूप हजारों लोगों को मृत्यु से बचाया नहीं जा सकेगा.
आप मंत्री हैं, आप अपनी सलाह अथवा निर्णय मंत्री मंडल के सम्मुख
रखिये जिससे २४ घंटों के भीतर सरकार की ओर से कोई निर्णय लागू किया जा सके. ऐसी
स्थिति में आपका क्या निर्णय होगा?
अपना निर्णय या विचार,
कमेंट्स में अवश्य बताईयेगा परन्तु एक बात स्पष्ट है. पूर्व में उल्लेखित प्रश्नों
की भांति ही इस बार भी निर्णय चाहे जो हो,
उसके उलट निर्णय के पक्ष में भी अनेकों तर्क दिए जा सकते हैं. मैं तो चर्चा करना
चाहता हूँ कि एक बार निर्णय ले लिए जाने की स्थिति में मंत्रिमंडल के और समाज के
बाकी लोगों का क्या कर्त्तव्य होना चाहिए?
उनको किस प्रकार का आचरण इस स्थिति में करना चाहिए?
मेरा मानना है कि इस
प्रकार की स्थिति में जो भी निर्णय होगा, कतिपय अन्य लोगों का उससे भिन्न
विचार हो सकता है और यह भली भांति स्वाभाविक है. परन्तु मुखिया द्वारा निर्णय ले
लिए जाने के बाद सभी लोगों को न केवल उस निर्णय का सम्मान करना चाहिए अपितु उसको
सफल बनाने के लिए भरसक प्रयत्न भी करने चाहिए, फिर चाहे मुखिया गाँव की पंचायत का
हो, घर का अथवा प्रदेश का या फिर देश का. हम अपना रोष
प्रकट कर सकते हैं, निर्णय से अपनी असहमति दर्शा सकते
हैं परन्तु ऐसा कुछ नहीं कर सकते हैं जिसे भितरघात की श्रेणी में रखा जा सके.
यदि कुछ ऐसा होता है जिससे
लिया गया निर्णय और कदम कमजोर हो जाता है तो फिर उस निर्णय के होने वाले प्रभाव भी
वैसे नहीं होंगे जिनकी अपेक्षा निर्णय करते समय की गयी थी. ऐसी अवस्था में फिर
मुखिया पर दोषारोपण करना सर्वथा गलत है. न सिर्फ यह, बल्कि भितरघात जैसे कृत्य
करने की अवस्था में मुखिया को यह भी अधिकार है कि वह ऐसा करने वालों से जैसा उचित
समझे उस प्रकार से व्यवहार करे.
यह तो मेरा निजी विचार
है परन्तु कुछ लोगों का यह तर्क हो सकता है कि मुखिया है तो भला उसकी मनमानी थोड़े
ना चलेगी. उनका कहना है कि उनकी दृष्टि से देखो तो उनका विचार अथवा सलाह अधिक उत्तम
है और उसी के अनुसार अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए था. अथवा दूसरा तर्क कि जो
निर्णय मुखिया द्वारा किया गया उसके कारण अनेकों समस्याएं हो रही हैं. मैं इस
प्रकार के तर्कों को गलत मानता हूँ. ऐसा नहीं है कि कोई विकल्प नहीं था अथवा कोई
समस्या नहीं हो रही बल्कि इसलिए गलत मानता हूँ क्यूंकि जब यह सर्वज्ञात है कि इधर
कुआँ उधर खाईं वाली स्थिति है तब किसी ओर तो जाना ही है और चाहे जिस ओर जाएँ, जाते
ही कुछ कष्ट भी होगा ही. हाँ एक बात रहती है जिसका तर्क दिया जा रहा है कि कुछ
तैयारियों के साथ निर्णय किया जाता हो सम्भावना थी कि कष्ट कुछ कम होते परन्तु
जैसा कि मैंने पहले बताया है जब निर्णय बहुत जल्दी में करना होता है तब पूरी
तैयारियों का समय नहीं होता.
जरा सोचिये, जब दुश्मन देश आप पर आक्रमण करता
है तब क्या आप यह सोच कर उसका मुंहतोड़ उत्तर देने में इसलिए देरी करते हैं कि पहले
पूरी तैय्यारी तो कर लें? इसी
प्रकार से जब यह नवीन कोरोना विषाणु जब आपके देशवासीओं पर हमला करता है तब आप
तुरंत इससे लड़ना प्रारंभ करते हैं बिना व्यर्थ की बहस में समय गंवाए. ऐसा ही हमारे
देश ने किया है और इसका प्रत्येक देशवासी को ना सिर्फ समर्थन करना चाहिए अपितु
इसको सफल बनाए के लिए हर संभव योगदान भी देना चाहिए.
लेख के अगले भाग में इस
बात पर चर्चा करेंगे कि लॉक डाउन से समस्याएं क्या हुई हैं और उनसे निपटने के लिए
क्या कदम सरकार द्वारा उठाये गए हैं और हम अपने स्तर पर क्या योगदान कर सकते हैं.
इसके अतिरिक्त जब यह लॉक डाउन हटाया जायेगा अथवा कम प्रतिबंधों के साथ लगाया
जायेगा तब क्या स्थितियां उत्पन्न होने की संभावना होगी. तब तक के लिए, स्वस्थ रहे, खुद भी इस बीमारी से बचें और
दूसरों को भी बचाएँ.
| जय भारत |
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